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Showing posts from August, 2018

# आलाकमान

आखिर क्या चाहते हैं , कि हम कुर्बान हो जाए बंद कर दे आवाजों को, और बेजुबान हो जाएं सलाम देते रहें , हुक्मरानों के हुक्म को या कुछ ऐसा करें,खुद कि आलाकमान हो जाए।

Atal se Atal

राष्ट्र को आकार दे  वो , निराकार हो गये मृत्यु से युद्ध के स्वप्न उनके , साकार हो गये नवयुग के निर्माताओं को मृत्यु कहां छू सकती है अपने तन को विघटित कर पटल अमर विचार हो गए

मरते शहर

इस मरते हुए शहर का कोई कद्रदान तो होगा ये शहर , कभी शहर भी हुआ करता था, इसका कोई बाकी निशान तो होगा । आंखों पे परदें डाल कर हुई है सियासत इस पर,  इसकी रहनुमाई का, कोई आलाकमान तो होग...

अच्छे दिन

बिना युद्ध लड़े देश के , जवान मर रहे हैं बुनियादों से जूझते देश के , किसान मर रहे हैं साहेब  तुम्हें रात में , नींद कैसे आती है लोगो के अच्छे दिन के अरमान मर रहे हैं

सितम

मोहब्बत , खिलाफत सियासत और क्या न लिखा खफा तो रहा , पर कभी खुद को खफा न लिखा सितम ढाते रहे वो , और मैं सहता रहा , बेवफा तो थे वो , पर उनको कभी बेवफा नही लिखा ।

सत्ता के गुलाम

सत्ता जाने के डर से , निजाम बदल गया सबका साथ और सबका विकास , वो पैगाम बदल गया अच्छे दिन आने वाले हैं ,यह कहने वालों का कुर्सी जाने के डर से, ईमान बदल गया ।

इश्क और हुस्न

कभी हुस्न इश्क को, कभी इश्क हुस्न को, मजबूर  करता  है मोहब्बत यूं ही नहीं  होती उनसे , मोहब्बत  तो दिल का  , फितूर करता है । उनके हुस्न के चर्चे हैं शहर में है, यह सच नही उनको मशहू...

Existence of life

अपनी लेखनी , अपनी सोच, तकरार मेरी अपनी है किसी माझी के हाथों , नहीं मेरी नाव, मेरे अपने हाथों में , पतवार मेरी अपनी है लड़ने के लिए कभी, किराए के सिपाही नहीं ढूंढे मेरे अपनों हाथो...