Tum

सदियों से सागर उमड़ रहे हैं
अपनी व्यथा सुनाने को
कहां कोई चंद्रमा बैठा है
उनकी  हद तक आने को
थोड़ा जगत रचयिता समझे
बस थोड़ा चांद समझ जाए
फिर देखो उत्पात सिंधु का
अपनी प्यास बुझाने को

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