बरसात और बादल

आज फिर घटाएं उमड़ आई हैं
आज फिर वह तराने याद आएंगे
आज फिर जमीं से जाकर लिपटी हैं बूंदे
आज फिर वह जमाने याद आएंगे
उनकी निगाहों से जो लगाए गए थे कभी
आज फिर वह निशाने याद आएंगे
जिन राहों में कभी उनका इंतजार किया था
वो आज भी नहीं बदली
वो कभी तो मेरे जख्मों के निशान
अपने उन को दिखाने आएंगे
आज फिर घटाएं उमड़ आई हैं
आज फिर वह तराने याद आएंगे
आज फिर जमीन से जाकर लिपटी है बूंदें
आज फिर वह जमाने याद आएंगे।

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